Table of Contents
Toggleप्रारंभिक जीवन
हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार राजेंद्र यादव का जन्म 28 अगस्त, 1929 को उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में हुआ। आगरा के ‘राजा की मंडी’ नामक मोहल्ले में उनके पिता का घर था। संयुक्त परिवार में माता-पिता की पहली संतान के रूप में राजेंद्र का जन्म परिवार के लिए एक आनंदोत्सव था। इस परिवार में सभी सदस्य शिक्षित थे, जिससे राजेंद्र को एक सकारात्मक और ज्ञानवर्धक माहौल मिला, जो उनके जीवन और लेखन पर गहरा प्रभाव डालने वाला था। उनके पिता का नाम ‘मिस्त्रीलाल यादव’ और माता का नाम ‘ताराबाई’ था। बता दें कि वे अपने तीन भाइयों और छ: बहनों में सबसे बड़े थे।
संयुक्त परिवार में जन्मे राजेंद्र का बचपन माता-पिता और भाई-बहनों के अतिरिक्त अपने ताऊ के साथ अधिक गुजरा। अपने ताऊ के संबंध में राजेंद्र यादव लिखते हैं – “वे कबूतरों की तरह हम लोगों की भी घेर-घार किया रखते। कबूतरों के बारे में वे इतना जानते थे, जितना दुनिया में बहुत कम लोग जानते होंगे।
साहित्यिक करियर की शुरुआत
हिंदी साहित्य के प्रतिभाशाली और प्रसिद्ध उपन्यासकार राजेंद्र यादव का साहित्यिक जीवन उनके किशोरावस्था में ही आरंभ हुआ। भिल्ली चाटवाले से सुनी अनेक कहानियाँ और अपने पिता से सुने “चंद्रकांता संतति” उपन्यास के अंशों ने उनके मन में कथाओं के प्रति गहरा प्रेम जगाया। इन्हीं संस्कारों के चलते राजेंद्र ने बचपन में ही तीन उपन्यास लिखने की कोशिश की, जिनमें से एक देवगिरि को केंद्रित कर एक अनगठ उपन्यास लिखा गया।
राजेंद्र यादव की पहली रचना अप्रतिहत प्रेरणावेग से जन्मी थी, और इसे भाषाविज्ञान से चार-छह दिन पहले लिखा गया। उनकी एक उल्लेखनीय कहानी “खेल-खिलौने” है, जो तांत्रिक और कठिन विषयों की चुनौती को बखूबी उठाती है। इस प्रकार, राजेंद्र यादव का लेखन हमेशा सामाजिक मुद्दों को छूता रहा, जो उनके गहरे अनुभव और संवेदनशीलता का प्रतीक है।
प्रमुख कृतियाँ
राजेंद्र यादव ने आधुनिक हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी लेखनी का परिचय दिया। उन्होंने ‘कमलेश्वर’ और ‘मोहन राकेश’ के साथ मिलकर ‘नई कहानी आंदोलन’ की शुरुआत की, जिसने हिंदी साहित्य में एक नई दिशा दी। वे न केवल एक प्रख्यात साहित्यकार थे, बल्कि एक प्रतिष्ठित संपादक भी थे, जिन्होंने ‘हंस’ कथा मासिक पत्रिका का लगभग 25 वर्षों तक संपादन किया।
उनका लेखन सामाजिक मुद्दों और मानवीय संवेदनाओं को गहराई से छूता है, जिससे उन्होंने साहित्यिक जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। यहाँ राजेंद्र यादव का जीवन परिचय (Rajendra Yadav Ka Jivan Parichay) प्रस्तुत करते हुए उनकी संपूर्ण रचनाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है:
श्रेणी | रचनाएँ |
---|---|
कहानी-संग्रह | देवताओं की मूर्तियाँ |
खेल-खिलौने | |
जहाँ लक्ष्मी कैद है | |
अभिमन्यु की आत्महत्या | |
छोटे-छोटे ताजमहल | |
किनारे से किनारे तक | |
टूटना | |
ढोल और अपने पार | |
चौखटे तोड़ते त्रिकोण | |
वहाँ तक पहुँचने की दौड़ | |
अनदेखे अनजाने पुल | |
हासिल और अन्य कहानियाँ | |
श्रेष्ठ कहानियाँ | |
प्रतिनिधि कहानियाँ | |
उपन्यास | सारा आकाश |
उखड़े हुए लोग | |
शह और मात | |
एक इंच मुस्कान (मन्नू भंडारी के साथ) | |
मंत्र-विद्ध और कुलटा | |
कविता | आवाज तेरी है |
आत्मकथा | मुड़-मुडक़े देखता हूँ |
व्यक्ति-चित्र | औरों के बहाने |
समीक्षा-निबंध-विमर्श | कहानी: स्वरूप और संवेदना |
प्रेमचंद की विरासत | |
अठारह उपन्यास | |
काँटे की बात (बारह खंड) | |
कहानी: अनुभव और अभिव्यक्ति | |
उपन्यास: स्वरूप और संवेदना | |
संपादन | हंस |
वे देवता नहीं हैं | |
एक दुनिया: समांतर | |
कथा जगत की बागी मुस्लिम औरतें | |
वक़्त है एक ब्रेक का | |
औरत: उत्तरकथा | |
पितृसत्ता के नए रूप | |
पच्चीस बरस: पच्चीस कहानियाँ | |
मुबारक पहला कदम | |
वह सुबह कभी तो आएगी | |
अनुवाद | हंसनी – (आंतोन चेखव का नाटक) |
चेरी का बगीचा – (आंतोन चेखव का नाटक) | |
तीन बहनें – (आंतोन चेखव का नाटक) | |
अजनबी – अल्बैर कामू | |
हमारे युग का एक नायक – लर्मंतोव | |
एक मछुआ: एक मोती – स्टाइनबैक |
पुरस्कार और सम्मान
राजेंद्र यादव को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। इनमें प्रमुख हैं:
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- व्योमेश चंद्र रॉय पुरस्कार
- भारत सरकार का पद्म श्री पुरस्कार
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार
- महाराष्ट्र साहित्य अकादमी पुरस्कार
इसके अलावा, उन्होंने कई साहित्यिक सम्मेलनों में भाग लिया और उनकी रचनाएँ विभिन्न भाषाओं में अनुवादित की गईं। उनका योगदान हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उन्हें एक विशिष्ट स्थान दिलाता है।
व्यक्तिगत जीवन
हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी का परिचय राजेंद्र यादव से तब हुआ जब मन्नूजी कलकत्ते के “बालीगंज शिक्षा सदन” में लाइब्रेरी के लिए पुस्तकों की सूची तैयार कर रही थीं। लेखक होने के नाते वे पहले से ही परोक्ष रूप से परिचित थे, लेकिन अब उनका प्रत्यक्ष परिचय हुआ। मन्नू भंडारी उस समय कलकत्ते के एक स्कूल में अध्यापिका थीं और लेखन में उनकी गहरी रुचि थी।
इसी दौरान, 1956 में राजेंद्र यादव का उपन्यास “उखड़े हुए लोग” प्रकाशित हुआ, जो दोनों के बीच एक समानता का बिंदु बन गया। 22 नवम्बर, 1959 को राजेंद्र और मन्नू विवाह बंधन में बंध गए। यह विवाह आंतरजातीय था और मन्नू के परिवार के विरोध के बावजूद हुआ, जो उनके साहस और प्रेम की कहानी को दर्शाता है।
निधन और विरासत
राजेंद्र यादव ने कई दशकों तक हिंदी साहित्य जगत में अद्वितीय साहित्य का सृजन किया। लेकिन 28 अक्टूबर 2013 को, 86 वर्ष की आयु में, उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आज भी उन्हें उनकी लोकप्रिय कृतियों के लिए याद किया जाता है। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिए उन्हें ‘शलाका पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
निष्कर्ष
राजेंद्र यादव का साहित्यिक योगदान हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उनके लेखन में सामाजिक मुद्दों, मानवीय संवेदनाओं और जटिलताओं का गहरा प्रतिबिंब मिलता है। उनकी रचनाएँ न केवल पाठकों के दिलों में जगह बनाती हैं, बल्कि उन्होंने नई कहानी आंदोलन के जरिए साहित्य के विकास में भी योगदान दिया।
यादव का जीवन और उनकी कृतियाँ एक प्रेरणा स्रोत हैं, जो हमें सिखाती हैं कि साहित्य का असली उद्देश्य समाज के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाना है। उनके निधन के बाद भी, उनकी रचनाएँ और विचार जीवित हैं, और आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें प्रेरित करती रहेंगी। राजेंद्र यादव ने साहित्य की दुनिया में जो छाप छोड़ी है, वह सदैव अमर रहेगी।
Other Post read now