Who is Shailaja Paik
भारतीय-अमेरिकी प्रोफेसर Shailaja Paik, जो दलित महिलाओं के अधिकारों और जातिगत भेदभाव पर रिसर्च करती हैं, को मैकआर्थर फाउंडेशन की ओर से 8,00,000 डॉलर (लगभग 6.7 करोड़ रुपये) का ‘जीनियस’ ग्रांट प्रदान किया गया है। यह प्रतिष्ठित ग्रांट उन लोगों को दी जाती है, जिन्होंने अपने क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया है या जिनमें उत्कृष्ट क्षमता की पहचान की गई है। शैलजा पाइक सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफेसर हैं, और उनका शोध विशेष रूप से दलित महिलाओं के अनुभवों और सामाजिक असमानताओं पर केंद्रित है।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का दृष्टिकोण, जो तमाम चुनौतियों के बावजूद, दलित महिलाओं को आत्म-उत्थान की जिम्मेदारी सौंपता है, इस बात को रेखांकित करता है कि वे किस तरह से सामाजिक बाधाओं का सामना करती हैं। मराठी ऐतिहासिक दस्तावेजों और मौखिक इतिहास के विश्लेषण के आधार पर, वह यह दिखाती हैं कि दलित तमाशा महिलाएं किस प्रकार इन बाधाओं को पार करके प्रदर्शन का उपयोग आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए करती हैं और स्थायी जातिगत भेदभाव के बावजूद अपनी मानवता को मजबूती से स्थापित करती हैं।
What is MacArthur Fellows Program in hindi
जॉन डी. और कैथरीन टी. मैकआर्थर फाउंडेशन एक निजी संगठन है जो दुनिया के करीब 117 देशों में गैर-लाभकारी संस्थाओं को अनुदान और प्रभाव निवेश के जरिए समर्थन देता है। इसकी कुल संपत्ति $7.6 बिलियन है, और यह हर साल करीब $260 मिलियन अनुदान और निवेश में वितरित करता है। शिकागो में इसका मुख्यालय है, और 2014 में इसे संयुक्त राज्य में 12वें सबसे बड़े निजी फाउंडेशन के रूप में स्थान दिया गया था। 1978 में अपना पहला अनुदान देने के बाद से, फाउंडेशन ने अब तक 8.27 बिलियन डॉलर से ज्यादा वितरित किए हैं। यह फाउंडेशन हर साल अपनी प्रतिष्ठित पुरस्कार योजना के जरिए उन व्यक्तियों को सम्मानित करता है जिन्होंने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं या जिनमें असाधारण क्षमता है।
Shailaja Paik Biography in Hindi
महाराष्ट्र के पोहेगांव में एक दलित परिवार में जन्मी पाइक, चार बेटियों में से एक थीं। उनका परिवार बाद में पुणे चला गया, जहां उनका बचपन यरवदा की झुग्गी में एक छोटे से कमरे वाले घर में बीता। साधारण परिस्थितियों के बावजूद, Shailaja Paik के माता-पिता, खासकर उनके पिता, शिक्षा के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। उन्होंने अपनी बेटियों को सिखाया कि सामाजिक चुनौतियों के बावजूद, शैक्षणिक उपलब्धि और धैर्य ही प्रगति की कुंजी हैं।
मां सरिता कहती हैं कि जहां दूसरी दो बेटियां कभी-कभी आपस में झगड़ा कर लेती थीं, वहीं Shailaja Paik का ध्यान सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ही रहता था। Shailaja Paik ने सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर किया।
इसी दौरान उनका परिवार यरवदा के एक दूसरे हिस्से में एक कमरे के मकान में चला गया, जो पहले जिस झुग्गी में वे रहते थे उसके किनारे पर स्थित था।
Shailaja Paik, जो आईएएस अधिकारी बनने की ख्वाहिश रखती थीं, ने यूपीएससी की परीक्षा दी और दो बार प्रीलिम्स भी क्लियर किया। लेकिन अपने पिता, देवराम पाइक के निधन के बाद उन्हें अपने इस सपने को छोड़ना पड़ा। उनकी मां सरिता ने फिर सिलाई का काम शुरू किया ताकि पति की पेंशन और गांव की थोड़ी सी जमीन से होने वाली आमदनी के साथ परिवार का गुजारा हो सके।
Shailaja Paik, book
फाउंडेशन ने बताया कि शैलजा पाइक का नया प्रोजेक्ट ‘तमाशा’ की महिला कलाकारों के जीवन पर आधारित है। ‘तमाशा’ एक लोकप्रिय लोक रंगमंच है, जिसे मुख्य रूप से महाराष्ट्र में सदियों से दलित समुदाय के लोग पेश करते आए हैं। इसी प्रोजेक्ट पर आधारित उनकी किताब है, जिसका शीर्षक ‘The Vulgarity of Caste: Dalits, Sexuality, and Humanity in Modern India’ है।
पाइक की पहली किताब, Dalit Women’s Education in Modern India: Double Discrimination (Routledge 2014), दलित महिलाओं की शिक्षा और औपनिवेशिक और समकालीन शहरी महाराष्ट्र में उनके अधिकारों के लिए किए गए संघर्षों पर केंद्रित है।
फाउंडेशन ने यह भी बताया कि राज्य सरकार ‘तमाशा’ को एक सम्मानजनक मराठी सांस्कृतिक परंपरा के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रही है। इसके बावजूद, तमाशा के मंचन के दौरान दलित महिलाओं के साथ अश्लीलता का जुड़ाव अब भी बना हुआ है।
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