परिचय:
मार्क्सवाद, कार्ल मार्क्स और फ़्रेडरिक एंगेल्स द्वारा विकसित एक राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक परिवर्तन की विचारधारा है मार्क्सवाद पूँजीवादी व्यवस्था को ध्वस्त कर देने का पक्षधर है, क्योंकि यह मजदूर वर्ग के शोषण (Exploitation) पर आधारित है। मार्क्स ने पूँजीवादी व्यवस्था (Capitalist System) में व्याप्त शोषण का गहराई से विश्लेषण किया। इसी आधार पर उन्होंने क्रांति द्वारा इस व्यवस्था के नष्ट हो जाने का विचार प्रस्तुत किया। मार्क्स के अनुसार यह क्रांति मजदूर वर्ग के नेतृत्व में होगी। इसके साथ ही वे शोषण से रहित सामाजिक व्यवस्था का स्वप्न भी प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने स्पष्ट तौर पर सामाजिक परिवर्तन का उद्घोष किया।
मार्क्सवाद का उद्भव:
मार्क्सवादी दर्षन काल मार्क्स के जन्म के पहले भी अस्तित्व में था। इसी कारण से डेविड मैक्लेलन ने मार्क्सवाद पर तीन पुस्तकों को लिखा है, मार्कसिज्म बिफोर मार्क्स, थॉट ऑफ मार्क्स और मार्कसिज्म आफ्टर मार्क्स। उसी प्रकार पोलिष विचार लेसजेक कोलाकोस्की ने मार्क्सवाद पर तीन पुस्तकों को लिखा है। यह बात फिर उठती है कि मार्क्सवाद का अर्थ मात्र कार्ल मार्क्स के विचार नहीं हैं।
मार्क्सवाद के प्रमुख सिद्धांत:
ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism):
समाज के बारे में मार्क्स के सामान्य विचारों को ही उसका ऐतिहासिक भौतिकवादी सिद्धान्त कहा जाता है। भौतिकवाद (materialism) समाजशास्त्र के चिन्तन का आधार है, क्योंकि मार्क्स के अनुसार भौतिक दशायें अथवा आर्थिक कारक समाज की संरचना और विकास को प्रभावित करते हैं। उसके सिद्धांत के अनुसार भौतिक दशायें अनिवार्यतः उत्पादन का तकनीकी साधन हैं तथा मानवीय समाज उत्पादन की शक्ति और संबंधों से बनता है।
इसे ऐतिहासिक तथा भौतिकवादी क्यों कहा जाता है। यह ऐतिहासिक इसलिये है, क्योंकि मार्क्स ने इसके द्वारा मानवीय समाजों की एक अवस्था से दूसरी अवस्था में विकसित होने की क्रिया को बताया है। इसे भौतिकवादी इसलिये कहा गया, क्योंकि मार्क्स ने मानवीय समाज के विकास की व्याख्या भौतिक अथवा आर्थिक आधारों पर की है।
द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism)
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद इतिहास की व्याख्या के लिए मार्क्स और एंगेल्ज़ द्वारा विकसित वैज्ञानिक विधि है। यहाँ मार्क्स पूर्ववर्ती विचारकों, विषेषतया, जर्मन दार्षनिक हेगेल से पूरी तरह प्रभावित हैं। द्वन्द्वात्मक (Dialectics) एक बहुत पुरानी विधि है, विरोधी विचारने के संघर्ष के माध्यम से विरोधाभासों को व्यक्त करते हुए सत्य को जानने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। हेगेल ने संवाद (Thesis), प्रति-संवाद (Anti-thesis) तथा संष्लेषण (Synthesis) के तीनों रूपों को विकसित करके इसे पेष किया है।
द्वन्द्वात्मक त्रिगुण (Dialectical Triad) के नाम से मुख्य रूप से इसे जाना जाता हैं। प्रगति या विकास द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया से होता है। विकास की प्रत्येक अवस्था में, यह विरोधाभासों द्वारा वर्गीकृत किया जाता है। ये विरोधाभास आने वाले परिवर्तन, प्रगति और विकास को प्रेरित करते हैं। संवाद को इसके प्रति संवाद के द्वारा चुनाती दी जाती है। दोनों में सच्चाई और असत्यता क्षणभंगुर होती है। संवाद और प्रति-संवाद के संघर्ष के परिणामस्वरूप, सच्चाई बरकरार रहती है, लेकिन असत्य तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। ये असत्य तत्त्व विरोधाभासों को जन्म देते हैं।
संवाद और प्रति-संवाद के सच्चे तत्त्व संष्लेषण में एक साथ मिला दिये जाते हैं। यह विकसित संष्लेषण समय के अंतराल में संवाद बन जाता है और इस प्रकार यह पुनः अपने विरोधी प्रति-संवाद द्वारा चुनौती प्राप्त करता है, जो पुनः संष्लेषण में बदल जाता है। यह संवाद, प्रति-संवाद और संष्लेषण की प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक यह पूर्णता की अवस्था तक नहीं पहुँच जाती है।
इस विकासवादी प्रक्रिया में नयी अवस्था आएगी, जब कोई असत्य तत्त्व नहीं होगा। ये विकास के विभिन्न अवस्थाओं में नष्ट हो जाएँगे। अंततः सिर्फ सत्य ही बचता है, क्योंकि यह कभी भी नष्ट नहीं होता है। यह पूर्ण अवस्था को जन्म देगा और कोई विरोधाभास नहीं होगा और इस प्रकार आगे कोई विकास नहीं होगा।
वर्ग संघर्ष का सिद्धांत :
वर्ग संघर्ष का सिद्धांत मार्क्सवाद का एक प्रमुख विचार है, जिसके अनुसार मानव समाज का पूरा इतिहास वर्गों के बीच संघर्ष का इतिहास है। इस संघर्ष का मूल कारण उत्पादन के साधनों का असमान स्वामित्व है। समाज में हमेशा दो प्रमुख वर्ग होते हैं: एक शोषक वर्ग और दूसरा शोषित वर्ग। शोषक वर्ग उन संसाधनों और उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण रखता है, जिनसे समाज की सम्पत्ति का निर्माण होता है, जबकि शोषित वर्ग उन साधनों के अभाव में अपने श्रम को बेचने के लिए मजबूर होता है।
मार्क्सवाद के अनुसार, शोषक वर्ग (बुर्जुआ वर्ग) उत्पादन के साधनों का मालिक होता है और श्रमिक वर्ग (प्रोलितारियात) को काम करने के लिए मजबूर करता है। श्रमिक वर्ग अपने श्रम से जो उत्पादन करता है, उसका अधिशेष मूल्य (Surplus Value) शोषक वर्ग के पास चला जाता है। इससे समाज में असमानता और आर्थिक विषमता पैदा होती है।
वर्ग संघर्ष समाज में क्रांति का कारण बनता है, क्योंकि शोषित वर्ग अंततः शोषण का विरोध करता है और अपने अधिकारों के लिए लड़ाई करता है। यह संघर्ष धीरे-धीरे बढ़ता है और समाज में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक बदलाव लाता है। मार्क्स का मानना था कि यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक एक वर्गहीन समाज की स्थापना नहीं हो जाती, जहाँ सभी लोगों को समान अधिकार और अवसर प्राप्त होंगे।
वर्ग संघर्ष का सबसे बड़ा उदाहरण फ्रांसीसी क्रांति और रूसी क्रांति में देखा जा सकता है, जहाँ शोषित वर्ग ने शोषक वर्ग के खिलाफ संगठित होकर क्रांति की और समाजवादी व्यवस्था की स्थापना की। आधुनिक समाज में भी वर्ग संघर्ष आर्थिक असमानता, श्रमिकों के अधिकारों और न्यूनतम वेतन की बहसों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।