मन्नू भंडारी हिंदी साहित्य की एक प्रख्यात लेखिका, कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में जानी जाती हैं। वे 1960 के दशक के नयी कहानी आंदोलन की प्रमुख महिला हस्तियों में से एक रही हैं। जब नयी कहानी आंदोलन अपने शिखर पर था, तब मन्नू भंडारी ने हिंदी कथा साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपनी लेखनी के माध्यम से साहित्य जगत में विशेष पहचान बनाई। आइए उनके जीवन परिचय, प्रमुख रचनाओं, साहित्यिक योगदान और उन्हें मिले पुरस्कारों की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करें।
मन्नू भंडारी का जन्म 1931 में मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा गाँव में हुआ था, लेकिन उनकी इंटर तक की पढ़ाई राजस्थान के अजमेर में हुई। मन्नू भंडारी का जन्म महेंद्र कुमारी के नाम से हुआ था, लेकिन लेखन के लिए उन्होंने ‘मन्नू’ नाम को चुना। उन्होंने एम.ए. तक की पढ़ाई पूरी की और कई वर्षों तक दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज में अध्यापन किया।
साहित्यिक करियर की शुरुआत
उनके उपन्यास आपका बंटी‘, जो धर्मयुग में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ था, ने उन्हें हिंदी साहित्य में व्यापक लोकप्रियता दिलाई। मन्नू भंडारी ने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। लेखन की प्रेरणा उन्हें अपने परिवार से मिली, उनके पिता सुख सम्पतराय स्वयं एक प्रतिष्ठित लेखक थे, जिससे मन्नू के लेखन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
प्रमुख रचनाएं
मन्नू भंडारी ‘नई कहानी’ के दौर की कहानीकार हैं। ‘मैं हार गई’, ‘यही सच है’, ‘एक प्लेट सैलाब’, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’, ‘त्रिशंकु’ आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।
आपका बंटी’ (1971) – यह उपन्यास एक बच्चे की संवेदनशील दृष्टि से विवाह विच्छेद की पीड़ा को उजागर करता है। तलाक की त्रासदी के बीच बच्चे की मनोवैज्ञानिक स्थिति को मर्मस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
एक इंच मुस्कान’ (1962) – यह उपन्यास मन्नू भंडारी और उनके पति राजेंद्र यादव द्वारा सह-लेखित है। दोनों ने इसे बारी-बारी से एक-एक अंक लिखते हुए तैयार किया। पढ़े-लिखे, आधुनिक व्यक्तियों की प्रेमकथा पर आधारित इस उपन्यास का अंत दुखद है, जो इसकी गहराई और यथार्थता को और अधिक बढ़ाता है।
महाभोज’ (1979) – इस उपन्यास में राजनीति और नौकरशाही के भ्रष्टाचार के तले पिसते आम आदमी की पीड़ा को बेबाकी से चित्रित किया गया है। इस पर आधारित नाटक को बड़ी लोकप्रियता मिली, जैसे ‘यही सच है’ पर आधारित फिल्म ‘रजनीगंधा’ को, जिसने 1974 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी जीता।
साहित्य में योगदान
मन्नू भंडारी ने बदले हुए परिवेश में संस्कार और आधुनिकता के बीच उलझे हुए नारी- मन के द्वन्द्व को बड़ी ईमानदारी से चित्रित किया है।
वस्तुतः उन्होंने भावुकता से हटकर बदले हुए जीवन-संदर्भ में नारी जीवन के यथार्थ को देखा-परखा है और उसे अपनी कहानियों में बड़ी सादगी के साथ व्यक्त किया है। उन्होंने अपनी कुछ कहानियों में मजदूर वर्ग की असहाय नारियों की दयनीय स्थिति, संघर्ष और उनकी मानसिकता का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है।
महाभोज –हिंदी साहित्य साठ के दशक के बाद आमतौर पर मोहभंग के कारण ऐसी अवस्था में था जहाँ बाहरी सामाजिक जीवन के स्थान पर व्यक्ति के आंतरिक जगत का मनोविश्लेषणवादी तथा अस्तित्ववादी विश्लेषण प्रमुख हो गया था। 1967 के बाद से भारतीय राजनीति में तेजी से स्थितियाँ बदलने लगीं। महाभोज में लेखिका ने भयावह होते हुए इसी यथार्थ को समझने का ईमानदार प्रयास किया है।
मन्नू भंडारी की कहानियाँ हों या उपन्यास उनमें भाषा और शिल्प की सादगी तथा प्रामाणिक अनुभूति मिलती है। उनकी रचनाओं में स्त्री-मन से जुड़ी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति भी देखी जा सकती है।
पुरस्कार और सम्मान
उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए हिंदी अकादमी के शिखर सम्मान सहित उन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं जिनमें भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पुरस्कार शामिल हैं।
राजेंद्र यादव से विवाह | Biography of Mannu Bhandari in hindi
मन्नू भंडारी और राजेंद्र यादव का विवाह साहित्यिक जगत के दो प्रतिष्ठित हस्तियों का मिलन था। दोनों ने अपने-अपने लेखन के माध्यम से हिंदी साहित्य में विशेष योगदान दिया। राजेंद्र यादव, जो हिंदी साहित्य में आधुनिक विचारों और नयी कहानी आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में से एक थे, मन्नू भंडारी के जीवनसाथी बने। दोनों ने मिलकर एक-दूसरे के साहित्यिक सफर को आगे बढ़ाया, और ‘एक इंच मुस्कान’ जैसे उपन्यास को भी सह-लेखित किया।
हालांकि, व्यक्तिगत जीवन में उनके संबंध जटिल रहे। दोनों के बीच वैचारिक मतभेद और आपसी संघर्ष समय-समय पर उभरते रहे, जो उनके निजी जीवन पर असर डालते रहे। आखिरकार, वे अलग हो गए, लेकिन उनका साहित्यिक संबंध और परस्पर सम्मान कायम रहा। मन्नू भंडारी और राजेंद्र यादव का विवाह साहित्यिक दृष्टिकोण से तो महत्वपूर्ण रहा, लेकिन व्यक्तिगत मोर्चे पर उतना सुखद नहीं था।
उत्तरकालीन जीवन और निधन
15 नवंबर 2021 को, मन्नू भंडारी का निधन हो गया। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत ने एक महत्वपूर्ण स्तंभ खो दिया। उनके साहित्यिक कार्यों ने उन्हें हिंदी साहित्य के इतिहास में अमर बना दिया है। उनके लेखन की सादगी और सामाजिक यथार्थ को चित्रित करने की अद्वितीय शैली आज भी नई पीढ़ी के लेखकों और पाठकों को प्रेरित करती है। मन्नू भंडारी का साहित्यिक योगदान और उनकी रचनाएं हिंदी साहित्य में हमेशा जीवित रहेंगी।
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